आज के महत्वपूर्ण सामान्य ज्ञान में महाजनपद काल के बारे में पढ़े -Read about Mahajanapada period in today’s important general knowledge.

आज के महत्वपूर्ण सामान्य ज्ञान में  महाजनपद काल के बारे में पढ़े -Read about Mahajanapada period in today’s important general knowledge.

महाजनपद काल

  •  महाजनपड, प्राचीन भारत में राज्य या प्रशासनिक इकाईयों को करते थे।
  • छठी शताब्दी ई. पू. तक पशिमी बिहार तथा पूर्वी उत्तर प्रदेश में लोहे की खोज एवं उसके प्रयोग से समाज में क्रांतिकारी परिवर्तन हुण लोहे की खोज तथा इससे निर्मित अख-शस्त्र एवं अन्य उपकरणों के प्रयोग के चलते अनेक शकिशाली राज्य बने तथा साम्राज्य विस्तार के चलते बड़े-बड़े
    प्रादेशिक राज्यों का निर्माण सम्भव हो सका।
  • लोहे की खोज और उससे निर्मित हथियारों के इस्तेमाल से समाज में योद्धा वर्ग और शक्तिशाली हुए तथा नए राज्यों के निर्माण एवं पुराने राज्यों
    पुनर्गठन व विस्तार में इनकी भूमिका महत्वपूर्ण हो गई। इसके परिणामस्वरूप उत्तरवैदिक काल के जनपद अब महाजनपदों में परिवर्तित होते चले
    गए
  • ये सभी महाजनपद आज के उत्तरी अफगानिस्तान से बिहार तक और हिन्दुकुश से गोदावरी नदी तक में फैला हुआ था।
  • बौद्ध ग्रन्थ ‘दीर्घ निकाय के महागोबिन्द सुत में भारत की आकृति का वर्णन करते हुए से उत्तर में आयताकार तथा दक्षिण में त्रिभुनाकार यानि एक
    बैलगाड़ी की तरह बताया गया है।
    • भारत में गोतम बुद्ध के जन्म के पहले ही 16 महाजनपदों का उदय हो चुका था। यौद्ध ग्रन्थ ‘अंगुरनिकाय’, ‘महावस्तु’ एवं जैन ग्रन्थ “भगवतीसूत्र में इन 16 महाजनपदों की सूची का विवरण मिलता है।
    • इन .16 महाजनपदों में से 15 महाजनपद उत्तर भारत में स्थित थे तथा एकमात्र महाजनपद अश्मक’ दक्षिण भारत में गोदावरी नदी के दक्षिणी भाग में स्थित था।
    • वग्जि तथा मल्ल महाजनपद में कई छोटे-छोटे गणराज्य शामिल वे तथा यहाँ पर गणतंत्रात्मक शासन व्यवस्था थी।
    महाजनपद काल में भारत में निम्नांकित 6 महानगर घे- “राजगृह (गिरिव्रज), चम्पा, श्रावस्ती, साकेत, काशी तथा कौशम्बी”।
    महावनपद काल भारतीय उपमहाद्वीप में द्वितीय नगरीकरण का काल माना जाता है।
    • प्रथम नगरीकरण सिन्धु घाटी की सभ्यता जहाँ कांसे के प्रयोग से जुड़ा हुआ था, वही द्वितीय नगरीकरण लौह धातु के प्रयोग से जुझ हुआ था।
  • इस काल तक में मौद्रिक अर्थव्यवस्था मौजूद थी तथा चांदी के सिक्के ‘आहत या पंचमार्क सिक्के के नाम से प्रचलित थे। इन सिक्कों को पीटकर
    उप्या या किसी चीज का निशान लगाया जाता था, इसलिए इनों आहत सिक्के कहा जाता था।
    • ई. पू. छठी सदी को लेकर ई. पू. सारी सदी तक प्रचत्ता में रहे इन आहत सिक्कों के वितरण से अनुमान होता है कि उस समय तक सम्पूर्ण भारत में एक ही मुद्रा प्रचलित थी। इससे उस जग में भारत के एकता एवं अखाडता की साफ झलक दिखती है।
    • बौद्ध निकायों में भारत को पाँच भागों में वर्णित किया गया है – उत्तरापथ (पतिमोत्तर भाग), मध्यदेश, प्राची (पूर्वी भाग) दक्षिणापश्च तथा अपरान्ता (पश्चिमी भाग) का उल्लेख मिलता है। इससे इस बात का भी प्रमाण मिलता है कि भारत की भौगोलिक एकता ई. पू. छठी सदी से ही परिकल्पित है।
  • प्रसिद्ध वैयाकरण पाणिनि ने 22 महाजनपदों का उल्लेख किया है। इनमें से तीन – ‘मगध, कोमल तथा वन्स’ को उन्होंने महत्वपूर्ण मनाया गया
    है। परन्तु इतिहासकार इससे सहमत नहीं हैं तथा वे ऐसा मानते हैं कि ये अन्तर भिन्न-भिन्न समय पर राजनीतिक परिस्थितियों के बदलने के कारण
    हुआ है।
    • सर्वमान्य रूप से सभी इतिहासकारों ने 16 महाजनपदों को ही मान्यता दी है।
  • इन 16 महाजनपदों में – ‘मगध, कोशल, वत्स तथा अवन्ति राज्य अधिक शक्तिशाली थे। यह काल आपसी टकराव का काल था, जिसमें मगध इन तीनों शक्तिशाली राज्यों एवं अन्य प्रमुख राज्यों को पराजित कर सर्वाधिक समृद्ध तथा सर्वशक्तिमान राज्य बनकर विश्व पटल पर उभरा।

छठी शताब्दी ई. पू. के 16 महाजनपद

1. अंग-अंग महाजनपद के अंतर्गत वर्तमान विहार के भागलपु तथा मुंगेर जिले आते हो इसकी राजधानी-‘चम्पानगरी’ या मालिनी थी जिसकी
पहचान आधुनिक भागलपुर से की जाती है।
• यहाँ का प्रसिद्ध शासक ब्रह्मदन था जिसे हर्यक वंश के संस्थापक विम्बिगार ने पाजित करके अंग को मगध साम्राज्य में मिला लिया था।

2 काशी – झाके अन्तर्गत बनारस (वर्तमान वाराणसी) तथा इसके समीपवर्ती क्षेत्र आते थे। काशी की राजधानी -‘बनारस’ श्री तथा इस शहर के दोनों ओर ‘वरुणा’ तथा ‘अस्सी नदियां बहती थीं। वहां के प्रसिद्ध राजा ‘वानर’ तथा ‘अश्वसेन’ थे।
• छठी शताब्दी ई.पू. में वाराणसी मिट्टी की दीवारों से घिरी हुई एक प्रसिद्ध नगरी थी। अजातशत्रु ने काशी को जीतकर उसे मगध साम्राज्य में मिला
लिया था।

3. कोशला – कोशला राज्य मुख्यतः वर्तमान उत्तर प्रदेश के जिले फेजाबाद, गोंडा, बहराइच’ के क्षेत्रों में फैला हुआ था। यह राज्य उत्तर में नेपाल, दक्षिण
में सई नदी, पत्रिम में पांचाल राज्य तथा पूर्व में सवानीरा (गंडक) नदी तक फैला हुआ था।
• कोशल राज्य दो भागों में बंटा हुआ था जिसमें उत्तरी भाग की राजधानी – अयोध्या तथा दक्षिणी भाग की राजधानी – “श्रावस्ती” थी। यहाँ के प्रमुख राजा ‘प्रसेनजित’ वे जो गौतम बुद्ध के समकालीन थे।
• गोतम बुद्ध ने अपने जीवन के सर्वाधिक 21 वर्षकाल यहीं श्रावस्ती में बिताए थे तथा यहीं पर उन्होंने अपने सबसे ज्यादा उपदेश दिये थे।

4. मल्ल – मल्ल एक गणतन्त्र महाजनपद था जो उत्तर प्रदेश के आधुनिक गोरखपुर एवं देवरिया जिले के क्षेत्रों में फैला हुआ था।
• मत्त महाजनपद दो भागों में विभाजित था, जिसमें एक भाग की राजधानी -“कुशीनगर” (कुशावती) तथा दूसरे भाग की राजधानी -“पावा” थी

5. चेदि – चेदि महाजनपद के अन्तर्गत उत्तर प्रदेश के बुन्देलखण्ड के पूर्वी भाग तथा इसके निकटवर्ती क्षेत्र शामिल थे। , इसकी राजधानी ‘शक्तिमती’ थी तथा यहाँ का प्रमुख शासक ‘उचापर था।

6. वज्जि – वज्जि आठ गणराज्यों (कुलो) का एक संघ था जिसमें विदेह, लिच्छयी, जातक एवं वाजिज महत्वपूर्ण थे। सभी गणराज्यों की अपनी-अपनी राजधानियाँ थी।
• वग्जि संघ में सबसे बड़ा और शक्तिशाली गणतन्त्र वैशाली का लिच्छवी गणतन्य था। लिच्छवी गणराज्य को विश्व का पहला गणराज्य माना जाता है। लिष्छवी की राजधानी -‘वैशाली’ तथा विदेह की राजधानी -‘मिथिला’ थी।
• मगध सम्राट अजातशत्रु ने अपने सुयोग्य मन्त्री सुनीधा एवं बस्सकार की मदद से वज्जि संघ में फूट डलवाकर उन्हें अलग करवाने में सफलता प्राप्त की थी।
• गौतम बुद्ध ने वैशाली की नगरवधू ‘आम्रपाली’ को बौद्ध धर्म में दीक्षित किया था तथा वैशाली में ‘बौद्ध-संघ की स्थापना की थी।

7. वत्स – वत्स यमुना नदी के किनारे बसा हुआ था जिसके अन्तर्गत वर्तमान इलाहाबाद तथा कोशाम्बी के क्षेत्र आते थे। इसकी राजधानी -‘कौशाम्बी श्री
• वत्स का प्रसिद्ध शासक ‘वत्सराज उदयन’ था जो भास द्वारा लिखित पुस्तक ‘स्वपनयासबदत्तम’ का मुख्य पात्र (नायक) है। बाद में अवन्ति महाजनपद ने वत्स को जीतकर अपने राज्य में मिला लिया था।

8. कुरु – कुरु महाजनपद के अन्तर्गत दिल्ली तथा उसके निकटवर्ती क्षेत्र हरियाणा तथा मेरठ के कुछ हिस्से शामिल थे। इसकी राजधानी -‘इन्द्रप्रस्थ’ थी, जिसका उल्लेख महाभारत में किया गया है।
• कुरू के प्रसिद्ध शासक ‘कोरव्य’ थे। दिल्ली का प्राचीन नाम ‘योगिनीपुर था।

9. पांचाल – इसके अन्तर्गत रुहेलखण्ड के क्षेत्र -“बरेली, फर्रुखाबाद तथा बदायू ” के जिले आते थे कान्यकुब्ज भी यहीं स्थित था। महाभारत में उल्लेखित द्रोपदी पांचाली जिस कारण उन्हें पांचाती भी कहा जाता था।
• गंगा नदी पांचाल को दो भागों में बाँटनी थी जिसमें उत्तरी पांचाल की राजधानी – “अहिच्यान” (बरेली) तथा दक्षिणी पांचाल की
राजधानी – “कम्पिल्य” श्री।
• पांचाल मराजनपद को वैदिक सभ्यता का सर्वश्रेष्ट प्रतिनिधि माना गया है।

10.मत्स्य – इस महाजनपद के अन्तर्गत आधुनिक राजस्थान के जयपुर तथा उसके समीपवर्ती क्षेत्र आते थे।
• मत्स्य की राजधानी-‘विराटनगरी थी तथा वहाँ के प्रमुख शासक ‘विराट’ थे।

11. अवन्ति – अवन्ति महाजनपद के अन्तर्गत वर्तमान मध्य प्रदेश के मालवा के क्षेत्र आते थे।
• अवन्ति भी दो भागों में बंटा हुआ था जिसमें उत्तरी अवन्ति की राजधानी -“उज्जन तथा दक्षिणी अवन्ति की राजधानी – महिष्मती” थी।
• ‘चण्डयद्योत’ अनन्ति के प्रमुख शासक थी जब इन्हें पाण्डु (जॉन्डिस) रोग हो गया था तब मगध मबाट बिम्बिसार ने अपने राजवेध ‘जीवक’ को उनकी सेवा में भेजा था।
• मगध शासक शिशुनाग ने अवन्ति को जीतकर उसे मगध साम्राज्य में मिला लिया था।

12. गांधार- यह वर्तमान पाकिस्तान के रावलपिंडी तथा पेशावर के क्षेत्रों में फैला हुआ था। इसकी राजधानी – तक्षशिला’ थी।
• रामायण से मिली जानकारी के अनुसार तक्षशिला नगर की स्थापना भरत के पुत्र तक्ष ने की थी।
• प्रसिद्ध व्याकाणाचार्य एवं ‘अष्टध्यायी ‘ के लेखक ‘पाणिनी तक्षशिला के ही निवासी थे। तक्षशिला में भारत का सबसे पहला (संभवत: विश्व का सबसे पहला) विश्वविद्यालय स्थित था जहाँ दूर – दूर से लोग शिक्षा ग्रहण करने के लिए आते थे।
• सिकन्दर के भारत पर आक्रमण के समय गांधार का राजा ‘आम्भी यूनानियों से मिल गया था। आम्भी को भारत का प्रथम देशद्रोही राजा माना जाता है।

13. कम्पोज – यह पाकिस्तान के राजोरी तथा हमारा जिलों में अवस्थित था तथा इसकी राजधानी -‘हाटक या राजपुरा में स्थित थी।
• कम्बोज अच्छे नस्ल के घोड़ों के लिए प्रसिद्ध था। कौटिल्य ने कम्बोज को ‘वार्ताशात्पस्त्रोपजीवी’ कहा है

14. मगध – यह अखण्ड बिहार के वर्तमान पटना, नालंदा, गया तथा भोजपुर के क्षेत्रों में फैला हुआ था।
• मगध की प्रारम्भिक राजधानी – गिरिव्रज’ (राजगृवं राजगीर) थी जिसे बाद में हर्यक वंश के शासक उदयिन द्वारा इसे पाटलीपुर (वर्तमान पटना) में स्थानांतरित की गई थी।
• मगध के प्रमुख राजा बिम्बिसार, अजातशत, अनिल, चनागुन मोर्य, आगोक आदि थे।
• प्राचीन समय में मगध सम्पूर्ण भारत की राजनीतिक मत्ता का प्रमुख एवं निर्विवाद केन्द्रबिन्दु था।

15. शूरसेन – यह वर्तमान उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले के क्षेत्रों में फैला हुआ था। इसकी राजधानी ‘मथुरा’ थी।
शूरसेन का प्रमुख शासक अवन्तिपुर था यह महात्मा बुद्ध के उपदेशों से अत्यन्त ही प्रभावित था।

16. अश्मक-यह दक्षिण भारत का एकमात्र महाजनपद था , जो गोदावरी नदी के दक्षिणी भाग के दक्षिण में स्थित था
, इसकी राजधानी – ‘पोटिला पोतन’ (प्रतिष्ठान) थी। प्रतिष्ठान वर्तमान में महाराष्ट्र राज्य का एक भाग है।

महाजनपद काल में भारत के प्रमुख गणराज्य

मल्ल गणराज्य सम्बन्धित क्षेत्र वज्जि गणराज्य सम्बन्धित क्षेत्र
शाक्य – कपिलवस्तु (निपाल का तराई क्षेत्र) कोलिय  – रामग्राम, गोरखपुर (उत्तर प्रदेश)
मालव –  पजाब, राजस्थान कुलुट  – काबुल घाटी
भग्ग –  सुसुमगिरि (मिर्जापुर, उत्तर प्रदेश) मल्ल – कुशीनारा, कुशीनगर जिला (उत्तर प्रदेश)
योधेय – पूर्वी पंजाब , उत्तर प्रदेश, राजस्थान मल्ल – पावा , कुशीनगर जिला (उत्तर प्रदेश)
बुलि – अलकप्पा , बोतिया, आरा (बिहार) मोरिया – पिप्पलाचन, गोरखपुर जिला (उत्तर प्रदेश)
शिवि – राजस्थान लिच्छवी – वैशाली (बिहार)
कालाम –  केशपुत्त, सुल्तानपुर (उत्तर प्रदेश) विदेह – मिथिला (बिहार)
कुणिंद – हरियाणा, पंजाब अर्जुनायन – भरतपुर, अलवर (राजस्थान)

महाजनपद काल के व्यापारिक मार्ग

1. प्रथम मार्ग (उत्तरापथ) – यह मार्ग उत्तर-पश्चिम भाग में पुष्कलावती (तक्षशिला) से पाटलीपर और नामलिमि तक जाता था।

2. द्वितीय मार्ग – यह एक प्रसिद्ध व्यापारिक मार्ग था जो पशिम में पाटल से पूर्व में भौशाम्बी तक जाता था तथा अके बाद वह उत्तरापथ मार्ग में
मिल जाता था

3. तृतीय मार्ग – यह मार्ग दक्षिण में प्रतिष्ठान से शुरू होकर उता में श्रावस्ती तक जाता था।

4. चतुर्थ मार्ग – यह भगुमच्छ से उज्जयिनी होते हुए मथुरा तक जाता था

5. पंचम मार्ग (दक्षिणापत्र) – यह मार्ग प्रतिष्ठान से शुरू होकर श्रावस्ती को जाने वाला अत्यन्त महत्वपूर्ण मार्ग था। इस मार्ग से होकर व्यापार की महत्वपूर्ण वस्तुओं (हीरा, सोना, मुला, मषि, शंख आदि) के व्यापारियों के कारवां गुजरते थे।
• इसके अलावे पूर्वी तट पर ‘ताम्रलिमि’ तथा पक्षिमी तट पर भगुकच्या महत्वपूर्ण बन्दरगाह थे।