आज के रोचक एवं महत्वपूर्ण सामान्य ज्ञान में कण्व वश के बारे में पढ़े -Read about Kanva tame in today’s interesting and important general knowledge.
कण्व वश (73 ई.पू. -30 ई०पू०)
- कण्व वंश का संस्थापक -‘वसुदेव’ था। इसने अन्तिम शुंग शासक देवभूति की हत्या करके मगध में कण्व वंश की नींव रखी।
- शुंग वंश की भाँति ये लोग भी ब्राह्मण थे और उनका गोत्र कण्व था, इसलिए इनके वंश को कण्व वंश कहा जाता है
- वैदिक धर्म एवं संस्कृति संरक्षण की जो परम्परा शुगों ने प्रारम्भ की थी उसे कण्व वंश ने भी जारी रखा।
- कण्व वंश में कुल 4 राजा हुए जिन्होंने लगभग 45 वर्षों तक शासन किया।
- कण्व राजाओं के शासनक्रम एवं राज्यकाल क्रमशः इस प्रकार हैं –
1. वासुदेव (75 ई०पू० – 66 ई.पू.)-9 वर्ष
2. भूमिमित्र (66 ई.पू. – 52 ई.पू.)- 14 वर्ष
3. नारायण (52 ई.पू. – 40 ई.पू.)- 12 वर्ष
4. सुशर्मा/ सुशर्मन (40 ई.पू. – 30 ई.पू.) – 10 वर्ष - पुराणों में इन -‘कण्व’ या ‘काण्वायन’ राजाओं को -‘शुंग भृत्य के नाम से पुकारा गया है। यहाँ पर चारों कण्व राजाओं को शुंग-भृत्य कहने का अभिप्रायः शायद यह है कि नाममात्र के लिए इनके समय में भी शुंगवंशीय राजा ही सिंहासन पर विराजमान थे, यद्यपि सारी शक्ति इन भृत्यों के हाथ में ही थी। **(भृत्य = नौकर)
- वासुदेव और उसके उत्तराधिकारी केवल स्थानीय राजाओं की तरह हैसियत रखते थे। उनका राज्य पाटलिपुत्र और उसके समीप के प्रदेशों तक ही सीमित था।
- पुराणों के अध्ययन से पता चलता है कि यह वंश मगध में राज करता था, परन्तु इनके अधिकांश सिक्के विदिशा के आस-पास मिले हैं। इससे यह अनुमान लगाया जाता है कि इनकी एक राजधानी विदिशा भी रही होगी।
- वासुदेव के उत्तराधिकारी भूमिमित्र के नाम के सिक्के पांचाल क्षेत्र में पाए गये हैं, जिनमें -‘कण्वस्य’ अंकित हैं।
- कण्वस्य लिखे ताम्बे के सिक्के विदिशा और कौशाम्बी (वत्स क्षेत्र) में भी पाए गये हैं।
- पुराणों में एक स्थान पर कण्व राजाओं के लिए -‘प्रणव-सामन्त’ विशेषण भी दिया गया है।
- इससे यह सूचित होता है कि कण्व राजा ने अन्य राजाओं को अपनी अधीनता स्वीकार कराने में भी सफलता प्राप्त की थी परन्तु यह राजा इन चारों में कौन-सा था, इस विषय में कोई सूचना नहीं मिलती है।
- वायुपुराण के अनुसार सुशर्मा कण्व वंश का अन्तिम शासक था। 30 ई.पू. में उसके ही सेनापति एवं आंध्रजातीय भृत्य -‘सिमुक (सिन्धुक) ने इसकी हत्या कर दी तथा मगध में एक नए ब्राह्मण वंश-‘आन्ध्र-सातवाहन वंश की नींव डाली।