आज के रोचक एवं महत्वपूर्ण सामान्य ज्ञान में शुंग वंश के बारे में पढ़े – Read about the Sunga dynasty in today’s interesting and important general knowledge.
शुंग वंश(185 ई०पू० -73 ई.पू.)
- मौर्य वंश के अन्तिम शासक बृहद्रथ की हत्या करके 185 ई.पू. में पुष्यमित्र शुंग ने शुंग वंश के रूप में-‘प्रथम ब्राह्मण राजवंश की स्थापना की थी।
- अपनी हत्या के वक्त बृहद्रथ अपनी सेना के सैन्य परेड का निरीक्षण कर रहा था और पुष्यमित्र शुंग उसका सेनापति था।
- शुंग वंश के लोग मूलतः ईरानी मूल के सूर्यपूजक ब्राह्मण थे।
- पुराणों के अनुसार शुंग वंश के लोग उज्जैन के ब्राह्मण थे तथामौर्यों के अधीन नौकरी किया करते थे।
- पुष्यमित्र शुंग ने पाटलीपुत्र के स्थान पर – विदिशा’ (वर्तमान मध्य-प्रदेश में स्थित) को अपनी राजधानी बनाई।
- शुंगकाल को ब्राह्मण व्यवस्था का विकास, ब्राह्मण धर्म की उन्नति, कला-साहित्य को संरक्षण एवं संस्कृत साहित्य के अभूतपूर्व विकास के लिए जाना जाता है।
- प्रथम स्मृति ग्रन्थ – ‘मनुस्मृति की रचना भी शुंगकाल में ही की गई थी।
- पतंजलि रचित महाभाष्य, कालीदास रचित माल्विकाग्निमित्रम् तथा धनदेव के अयोध्या अभिलेख से शुंग वंश के बारे में विशेष जानकारी प्राप्त होती है।
- पुराण, हर्षचरित तथा माल्विकाग्निमित्रम् इत्यादि सभी ग्रन्थों में पुष्यमित्र शुंग के लिए -‘सेनानी’ अर्थात् ‘सेनापति’ की उपाधि का प्रयोग किया गया है। इससे यह भी अनुमान लगाया जाता है कि संभवतः पुष्यमित्र शुंग ‘सेनानी’ के नाम से शासन करता था।
- बाणभट्ट द्वारा रचित हर्षचरित में पुष्यमित्र शुंग को -‘अनार्य’ कहा गया है।
- पुष्यमित्र शुंग के राज्यपाल -‘धनदेव’ के अयोध्या अभिलेख से यह जानकारी प्राप्त होती है कि पुष्यमित्र शुंग ने ‘दो बार अश्वमेघ यज्ञ’ किया था।पतंजलि मुनि द्वारा इन यज्ञों को सम्पन्न करवाया गया था।
- पतंजलि उज्जैन के ब्राह्मण थे तथा पुष्यमित्र शुंग के राजपुरोहितथे। इन्होंने योग दर्शन का प्रतिपादन किया था।
- महाभाष्य नामक ग्रन्थ की रचना पतंजलि ने की थी जो वस्तुतः पाणिनी द्वारा लिखी गई संस्कृत व्याकरण की पुस्तक अष्टाध्यायी पर टीका है। * अपरार्क ने भी अष्टाध्यायी पर टीका लिखी थी। *
- पुष्यमित्र शुंग के शासनकाल की सबसे प्रमुख एवं महत्वपूर्ण घटना-‘यवनों का भारत पर आक्रमण’ करना था।
- इसके समय में यवनों ने चित्तौड़ के निकट माध्यमिका नगरी और अवध में साकेत पर डेरा डाला था, परन्तु पुष्यमित्र शुंग ने यवनों के आक्रमण को विफल कर दिया और उन्हें सिन्धु नदी के किनारे तक खदेड़ दिया था।
- मल्विकाग्निमित्रम् तथा गार्गी-संहिता दोनों ग्रन्थों से ही भारत पर हुए इस यवन आक्रमण की सूचना प्राप्त होती है।
- इण्डो-ग्रीक (हिन्द यवन) शासक मिनान्डर को भी पुष्यमित्र शुंग ने पराजित किया था।
- , पुष्यमित्र शुंग के शासनकाल की एक अन्य प्रमुख घटना इसका विदर्भ राज्य से युद्ध था।
- विदर्भ राज्य का शासक उस वक्त यज्ञसेन था जिसने मौर्य साम्राज्य के पतन होने के बाद स्वयं को स्वतन्त्र घोषित कर दिया था।
- पुष्यमित्र शुंग ने अपने पुत्र अग्निमित्र को यज्ञसेन पर आक्रमण करने के लिए विदर्भ भेजा था। विदर्भ में अग्निमित्र ने यज्ञसेन के चचेरे भाई -‘माधवसेन’ को अपनी ओर मिला लिया तथा उसके बाद विदर्भ पर आक्रमण कर यज्ञसेन को पराजित किया।
- पराजित होने के बाद यज्ञसेन और माधवसेन दोनों ने विदर्भ राज्य को आपस में बाँट लिया तथा पुष्यमित्र शुंग की अधीनता स्वीकार की।
- बौद्ध साहित्यों में पुष्यमित्र शुंग को बौद्ध धर्म का सबसे बड़ा विरोधी बताया गया है। कहा जाता है कि इसने सम्राट अशोक द्वारा बनवाये गए 84000 बौद्ध स्तूपों को नष्ट करवा दिया था।
- बौद्ध ग्रन्थ दिव्यवादान में भी पुष्यमित्र शुंग को बौद्धों का उत्पीड़क एवं पाटलिपुत्र के कुक्कुटराम महाविहार को नष्ट करनेवाला बताया गया है। परन्तु कुछ इतिहासकारों के अनुसार यह पूर्णतः सत्य नहीं है क्योंकि पुष्यमित्र शुंग ने साँची और भरहूत के स्तूपों का निर्माण करवाया था।
साँची का स्तूप
- साँची का स्तूप मध्य-प्रदेश में विदिशा के नजदीक रायसेन जिले में स्थापित है। यहाँ पर तीन स्तूपों का निर्माण हुआ है – ‘एक विशाल स्तूप एवं दो
छोटे स्तूप।
- यहाँ स्थित विशाल महास्तूप में – ‘महात्मा बुद्ध के’, दूसरे स्तूप में -‘अशोककालीन बौद्ध-धर्म के प्रचारकों के तथा तीसरे स्तूप में महात्मा बुद्ध के दो प्रमुख शिष्यों ‘सारिपुत्र एवं महमोगलायन के’ धातु अवशेष सुरक्षित रखे गए हैं।
- महास्तूप का निर्माण सम्राट अशोक के शासनकाल में ईटों कि सहायता से हुआ था तथा उसके चारों ओर काष्ठ (लकड़ी) की वेदिका बनी हुई थी।
- पुष्यमित्र शुंग द्वारा उसे पाषाण (पत्थर) की पट्टिकाओं द्वारा जड़वाया गया तथा उसकी वेदिका भी पत्थर की बनवाई गई। इसके अलावे पुष्यमित्र शुंग के समय में ही साँची के स्तूप का आकार दोगुना करवायागया था।
भरहूत स्तूप
- भरहूत स्तूप मध्य-प्रदेश में सतना के समीप स्थित है। इसके निर्माण का श्रेय भी पुष्यमित्र शुंग को दिया जाता है। इस स्तूप की वेष्टिनी पर ‘सुगनंरजें लिखा हुआ है।
- भरहूत स्तूप की खोज 1873 ई. में भारतीय पुरातत्व विभाग के जनक – अलक्जेंडर कनिंघम ने की थी।
- भरहुत स्तूप के अलावे बेसनगर और बोधगया के स्तूपों का निर्माण भी शुंगकाल में ही हुआ था।
- 149 ई०पू० में पुष्यमित्र शुंग की मृत्यु हो गई। उसकी मृत्यु के बाद उसका पुत्र अग्निमित्र अगला शासक बना।
- शुंग वंश में कुल 10 शासक हुए जिसमें – पुष्यमित्र शुंग, अग्निमित्र उसके पौत्र एवं अन्य वंशज- ब्रजमित्र, उद्रक, भागभद्र एवं देवभूति (अन्तिम शासक) ने क्रमशः शासन किया।
- पुष्यमित्र शुंग का पुत्र अग्निमित्र कालीदास रचित माल्विकाग्निमित्रम् का मुख्य नायक है। इस पुस्तक में अग्निमित्र और यवन -सुन्दरी के बीच के प्रेम-प्रसंगों एवं उसके आमात्य परिषद् की चर्चा की गई है।
- महाकवि कालीदास के अनुसार अग्निमित्र का पुत्र एवं पुष्यमित्र शुंग का पौत्र-“वसुमित्र’ ने सिन्धु नदी के तट पर यवनों को पराजित किया था।
- भागभद्र (भागवत) शुंग वंश का नौवां शासक था।
- भागभद्र के विदिशा स्थित दरबार में तक्षशिला के हिन्द-यवन शासक – ‘एंटियालकीड्स’ ने ‘हेलियोडोरस’ नामक राजदूत को भारत भेजा था।
- हेलियोडोरस ने यहाँ के भागवत धर्म से प्रभावित होकर बेसनगर में वसुदेव के सम्मान में एक गरुड़ स्तम्भ स्थापित किया था।
- इस स्तम्भ पर -‘दम्भ’ (आत्मनिग्रह), ‘त्याग’ तथा ‘अप्रमाद’ नामक तीन शब्द अंकित हैं।
- हेलियोडोरस का गरुड़ स्तम्भ हिन्दू धर्म से सम्बन्धित प्रथम स्मारक है।
- इसी काल में भागवत धर्म का उदय’ तथा -‘वसुदेव की उपासना प्रारम्भ हुई।
- शुंग वंश का 10वां और अन्तिम शासक -‘देवभूति था। यह अत्यन्त अयोग्य, दुर्बल और विलासी शासक था। देवभूति की हत्या 73 ई.पू. में उसके ही आधीन एक अधिकारी वसुदेव कण्व ने कर दी।
इसकी मृत्यु के बारे में हर्षचरित में इस प्रकार दिया गया है – “शुंगों के आमात्य वसुदेव ने रानी के वेश में देवभूति की दासी की पुत्री द्वारा स्त्री प्रसंग में अति आशक्त एवं कामदेव में वशीभूत देवभूति की हत्या कर दी।